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भटकती आत्मा भाग - 20

   



भटकती आत्मा भाग –20

मैगनोलिया के अनुनय विनय करने पर कलेक्टर साहब ने मनकू मांझी को काम पर रख लिया,परंतु अपने बंगले पर नहीं। क्योंकि उन्हें भय था कि कहीं प्रेम का खेल उनके बंगले पर ही न होने लगे। मनकू मांझी को मैगनोलिया से दूर ही रखना चाहते थे वे,इसलिए अपने ऑफिस में चपरासी के पद पर रख लिया । अब आए दिन मनकू माझी को काम के सिलसिले में कलेक्टर साहब के बंगले पर भी आना पड़ता था, इसलिये मैगनोलिया से प्रायः उसकी दिन में भी मुलाकात होने लग गई । मनकू माझी बंगले में मेहमान बनकर आए साहब मिस्टर जॉनसन से भी परिचित हो चुका था। एक दिन तो  मिस्टर जॉनसन ने हद पार कर दी  - 
   "मैगनोलिया तुम इस चपरासी से मुंह क्यों लगाती हो"?
   "यह मेरी अपनी बात है,आप इसमें इंटरफेयर ना करें" - मैगनोलिया ने जवाब दिया |
   "मुझे लगता है तुम इसको पहले से जानती हो"|
   "मैं यदि हां कहूं तो,आप क्या कर लेंगे"?
   " मैं - मैं यह कदापि सहन नहीं करूंगा, तुम एक काला आदमी से हंसकर प्रेम भरी बात करो"|
   "मैं करूंगी,आप रोकने वाले कौन होते हैं"?
   "मैं इस काले को मार डालूंगा" -  पैर पटकते हुए जॉनसन ने कहा। 
  "तुम यदि ऐसा करोगे डियर फ्रेंड,तो मैं भी तुम्हें शूट कर दूंगी"|
  "तुम्हारी यह मजाल"|
  "हां मैं कभी यह बर्दाश्त नहीं करूंगी" - भुनभुनाती हुई मैगनोलिया बोल रही थी।   
  मनकू मांझी हतप्रभ सा खड़ा रह गया था। उसको मिस्टर जॉनसन का व्यवहार वहुत बुरा लगा था। मिस्टर जॉनसन ने मनकू माझी को धमकी दी - 
"ऐ काले मेरी बात ध्यान से सुन ले,अगर फिर कभी बंगला में आए तो ठीक नहीं होगा, मैं तुमको गोली से भून दूँगा"|
  मनकू माझी  कुछ क्षण खामोश हतप्रभ सा खड़ा रह गया,और फिर दफ्तर की ओर चुपचाप चल पड़ा ।
   इसके बाद भी अक्सर दफ्तर के काम से मनकू माझी को बंगला पर आना ही पड़ता था। कभी सब्जी लेकर तो कभी और कोई सामान लेकर। मिस्टर जॉनसन से हमेशा कुछ न कुछ ताना मनकू माझी को सुनना पड़ता। मैगनोलिया ऐसे अवसर पर उन दोनों के बीच आ जाती, और मिस्टर जॉनसन का क्रोध और भी अधिक बढ़ जाता।

         -   ×   -    ×   -    ×   -

एक दिन मिस्टर जॉनसन बंगले पर नहीं था,मनकू माझी दफ्तर के काम से बंगले पर आया। मैगनोलिया ने हंसकर उसका स्वागत किया,तथा अपने कमरे की और उसको खींच कर ले चली। कमरे में मैगनोलिया ने मनकू को अपने बाहुपाश में भर लिया फिर उसको लिए दिए बिस्तर पर गिर पड़ी । दोनों जोर से खिलखिला कर हंसने लगे। नौकर भी घर में नहीं था, इसलिए खुलकर प्यार करने का मौका मिल गया था । मनकू की गोद में मैगनोलिया का सिर था,और वह प्यार से कभी उसके सिर तो कभी उसके कपोल को सहला लेता। कभी-कभी उसका चुंबन भी ले लेता था। इसी समय मिस्टर जॉनसन ने बंगले में कदम रखा,कमरे के समीप खड़ा होकर उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ लिया। उसके क्रोध की सीमा पार कर गई, वह मनकू मांझी पर लात घूँसा बरसाने लगा।
मैगनोलिया का इशारा पाकर मनकू  मांझी ने मिस्टर जॉनसन को धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया फिर उस पर लात घूँसों की वर्षा कर दी। इसके बाद पैर पटकता हुआ वापस दफ्तर की ओर चल पड़ा।

          -   ×   -   ×   -   ×   -

मिस्टर जॉनसन को मैगनोलिया के रहस्यमय व्यवहार से बंगला में आने के दो-चार दिन बाद से ही संदेह होने लगा था,परंतु वह यह नहीं जानता था कि मैगनोलिया का प्यार एक आदिवासी युवक से है | परंतु बंगला में जब मनकू माझी आने-जाने लगा तब मैगनोलिया के व्यवहार से उत्पन्न आशंका सत्यता में बदलती प्रतीत होने लग गई थी। उस दिन तो उसने अपनी आंखों से भी सब कुछ देख लिया था। वह स्वयं मैगनोलिया की सुंदरता पर मुग्ध था। किसी भी हालत में वह उसको खोना नहीं चाहता था। उसको बुलाया भी गया था,उस से निकटता स्थापित करके शादी करने के लिए ही। इसलिए वह मनकू माझी के प्रति आक्रोश से भर उठा। 
इस घटना की चर्चा उसने कलेक्टर साहब से भी की | कलेक्टर साहब ने आश्चर्य प्रकट किया | उन्होंने मनकू माझी को रास्ते से हटाने का उत्तरदायित्व मिस्टर जॉनसन पर ही डाल दिया | इसमें उनका स्वयं का भी हित था । वे स्वयं यह नहीं चाहते थे कि मैगनोलिया का प्यार एक काले युवक के प्रति समर्पित हो, इससे उनकी अपने समाज में बदनामी होती। परन्तु अपनी पुत्री को भी वे खोना नहीं चाहते थे,उसको भरपूर स्नेह देते थे, इसलिए उन्होंने मिस्टर जॉनसन को अपना हमराज बना लिया | उन्होंने स्पष्ट रूप से मिस्टर जॉनसन को समझाया - "तुम इस प्रकार मनकू मांझी को रास्ते से हटा दो कि मैगनोलिया को संदेह न हो"।
मिस्टर जॉनसन यह बात समझ गया, परंतु उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि कैसे उसको रास्ते से हटाए।
  उस घटना के बाद मनकू मांझी का बंगले में आना अब नहीं होता था,क्योंकि कलेक्टर साहब जब भी आवश्यकता होती दूसरे चपरासी को अपने बंगले पर भेजने लगे।
मैगनोलिया इस बात को समझ गई थी,मिस्टर जॉनसन की शिकायत के आधार पर ही मनकू माझी को अब पापा बंगले पर नहीं भेजते हैं | अब उसकी कभी कभार ही जंगल में मनकू से भेंट हो पाती थी, क्योंकि जानबूझकर उसको कार्यालय  से छुट्टी विलंब से दी जाती थी | मैगनोलिया मन ही मन खिन्न हो उठी परंतु अब उपाय ही क्या था। अपने स्वार्थ के लिए मनकू को नौकरी से हटाना भी वह नहीं चाहती थी।
एक दिन शाम के समय जानकी दौड़ी हुई बंगले पर आई। उस समय मैगनोलिया लॉन में उदास बैठी थी। उसकी निगाह जानकी पर चली गई। प्रसन्नता से मन खिल उठा। जानकी को बगल में पड़ी एक कुर्सी पर बैठ जाने को कहा। जानकी पहले तो हिचकिचायी, फिर कुर्सी पर बैठ गई। उसके मुख पर घबड़ाहट स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी। मैगनोलिया कुछ पूछना ही चाहती थी कि उसके पूर्व ही जानकी ने प्रार्थना भरी आवाज में कहा -   
    "मनकू भैया के पिताजी अचानक बीमार पड़ गये हैं, वह बेहोश पड़े हैं, इसलिए कृपा कर आप उनके दफ्तर में फोन कर के उन्हें जल्दी बुला दें"।
  मैगनोलिया के चेहरे पर घबराहट तिर गई । उसने कहा   -   
  "अच्छा तुम बैठो, मैं फोन करके आती हूं"।
मैगनोलिया कमरे में चली गई थी | जानकी का चेहरा सपाट था | उसकी दृष्टि लॉन के सुंदर फूलों पर टिक गई थी। कुछ देर के बाद मैगनोलिया बाहर आई, उसने कहा  -  
   "मैंने फोन कर दिया है, पापा उसको जल्दी भेज रहे हैं, तुम घबराओ नहीं"|
  जानकी ने कहा  -   "अच्छा मैं अब जाती हूं"।
   "क्यों चाय पी कर जाना" -   मैगनोलिया ने कहा।
   "नहीं, काका तबीयत अधिक खराब है, मैं नहीं जाऊंगी तो काकी को अकेली ही उनकी देखभाल करने में परेशानी हो जाएगी, इसलिए मेरा उनके निकट रहना जरूरी है" -  जानकी का उत्तर था l फिर जानकी ने हाथ जोड़ दिया l मैगनोलिया ने मुस्कुरा कर उसे विदा किया l उसका मन भी अप्रिय घटना की आशंका से भर उठा,क्योंकि कुछ दिनों से माइकल के पिता बीमार रहते आ रहे हैं | पता नहीं क्या हो जाए,यह सोचकर वह भी लॉन से उठकर अपने कमरे में चल पड़ी। उसका मन भी नहीं माना और रनिया गांव जाकर माइकल के पिता को देखने की इच्छा से झटपट तैयार होकर अश्व शाला से घोड़े को ले लिया,फिर चल पड़ी घोड़ा पर गांव की ओर |
जंगल के रास्ते से जब वह गुजर रही थी एक वीभत्स हंसी उसके कानों में पड़ी,साथ ही साथ किसी नारी की करुण पुकार भी सुनाई पड़ी | उसने अश्व की रश्मि थाम एक झटका दिया और घोड़े को रोक लिया । क्षण भर रुक कर ध्यान से आवाज सुनी फिर आवाज की दिशा में घोड़े को दौड़ा दिया।
  कुछ ही दूर जाने पर झाड़ी हिलता हुआ महसूस हुआ, फिर मिस्टर जॉनसन एक लड़की से उलझा हुआ दिखाई पड़ा | वस्तुस्थिति समझकर मैगनोलिया का खून खौल उठा | घोड़े पर रखी हुई अपनी सुरक्षा के लिए लाया हुआ बंदूक उठा लिया, फिर घोड़े से कूदकर झाड़ी की ओर चल पड़ी | निकट जाने पर उसे ज्ञात हुआ कि वह लड़की जानकी है | मिस्टर जॉनसन भी चौकन्ना हो गया था। उसने मैगनोलिया को आते देख लिया,परंतु वह कुछ बोले उसके पहले ही मैगनोलिया की तीव्र आवाज वनस्थली में गूंज उठी - 
   "मिस्टर जॉनसन इस लड़की को छोड़ दो"|
   "तुम जाओ,तुम अपना काम देखो, मैं हाथ में आई लड़की को नहीं छोड़ सकता"  -  जॉनसन ने कहा |
  "तुम इसे छोड़ दो नहीं तो मैं गोली चला दूंगी"|
   "यह धमकी मेरे साथ नहीं चल सकता" - जॉनसन ने कहा और पुनः जानकी के साथ जबरदस्ती करने लगा |
  मैगनोलिया आग बबूला हो गई, उसके बंदूक ने शोला उगला और गोली जॉनसन की जांघ में लगी l क्षणभर को वह बौखलाया और फिर लहरा कर जमीन पर लोटने लगा।
   मैगनोलिया ने जानकी से कहा -
   "तुम घर जाओ, मैं भी बाबा को देखने के लिए ही निकली थी,परंतु अब जाना नहीं हो सकेगा | इसको बंगले पर पहुंचाना भी जरूरी हो गया है"|
जानकी की आंखों से दो बूंद आंसू के टपके,और कृतज्ञता पूर्ण दृष्टि से मैगनोलिया को देखने लगी | मैगनोलिया ने उसकी पीठ को सहानुभूति से सहलाया और जाने को पुनः कहा। जानकी एक ओर चल पड़ी। मैगनोलिया ने बँगले की तरफ अपने घोड़े को सरपट दौड़ा दिया, क्योंकि घायल जॉनसन को वह अकेले बंगला में नहीं ले जा सकती थी। इसके लिए उसे बंगला पर जाकर सहायता लेना आवश्यक था।
        

                              
          क्रमशः 






             

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